MA Semester-1 Sociology paper-III - Social Stratification and Mobility - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता - सरल प्रश्नोत्तर समूह
लोगों की राय

बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2683
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।

उत्तर -

जाति प्रथा के गुण व कार्य
(Merits of Functions of Caste System)

(1) भारतीय समाजों को संगठित करना - जाति का सबसे बड़ा कार्य भारतीय समाज को संगठित करना है। "Caste in India" में हट्टन लिखता है कि, "तब यह समझा जा सकेगा कि जाति एक महत्वपूर्ण कार्य जो सम्भवतः उसके सब कार्यों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है और वह जो सर्वोपरि भारत में जाति को एक अद्वितीय संस्था बना देता है, वह भारतीय समाज को संगठित करना उसको बनाने वाले विभिन्न प्रतिकूल नहीं तो प्रतियोगी, समूहों को एक समुदाय में बाँधना है।" जाति प्रथा ने विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध धार्मिक और सामाजिक स्थिरता को बनाये रखा है।

(2) सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता - भारतीय समाज में जाति प्रथा ने सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता को बनाये रखा है। जाति प्रथा ने अपने कठोर नियमों के द्वारा हिन्दू समाज के सदस्यों को मुसलमान या ईसाई बनने से रोका जाति प्रथा से हिन्दू राज्यों में शासकों और शासितों में समन्वय बना रहा है। क्षत्रियों का कार्य ही शासन प्रबन्ध करना माना गया, अतः ब्राह्मणों और वैश्यों ने कभी भी राजसत्ता हथियाने की चेष्टा नहीं की। वे अपने कार्य क्रमशः अध्ययन और कृषि - वाणिज्य ही समझते रहे। इस प्रकार जाति से भारतवर्ष में राजनीतिक स्थिरता बनी रही।

(3) सुप्रजनन की शुद्ध रेखा (Pure Line of Genetics) को बनाये रखना - संजविक के अनुसार, भारतीय जाति प्रथा के सुप्रजनन की शुद्ध रेखा को बनाये रखने के लिये अति उत्तम पद्धति है। जातीय अन्तर्विवाह अथवा अपनी जाति में ही विवाह करने के नियम से जाति में बाहर के आनुवंशिक गुण नहीं आ पाते। गोत्र बहिर्विवाह अथवा गोत्र से बाहर विवाह नहीं हो पाते। इस प्रकार जाति में शुद्ध रक्त भी बना रहता है और सन्तान भी उत्तम पैदा होती है यद्यपि यह बात अभी वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा निश्चित नहीं की गई है।

(4) सामाजिक सुरक्षा का कार्य - जाति समाज में सामाजिक सुरक्षा बनाये रखती है। नौकरी छूट जाने या नौकरी न मिलने पर, वृद्धावस्था में अथवा विकलांग या रोगी हो जाने पर जाति व्यक्ति की सहायता करती है। जाति में धनिक और सम्पन्न लोग जाति के निर्धन लोगों की कन्याओं के विवाह का प्रबन्ध करते देखे गये हैं। सगाई, विवाह तथा जन्म-मरण आदि सभी अवसरों पर जाति-बिरादरी के लोग व्यक्ति के सुख-दुःख में हाथ बंटाते हैं।

(5) मानसिक सुरक्षा का कार्य - जाति से सदस्यों को मानसिक सुरक्षा भी प्राप्त होती है। उनको सगाई, विवाह, व्यवसाय, खान-पान, रीति-रिवाज आदि के विषय में नये सिरे से नहीं सोचना पड़ता। जाति ही इन सबका निश्चय करती है। व्यक्ति को किस समूह में विवाह करना है, कौन-सा व्यवसाय करना है, खान-पान में किन नियमों का पालन करना है, आदि जीवन की अनेक अत्यन्त महत्वपूर्ण समस्याओं का सुलझाव जाति के नियमों से हो जाता है।

(6) व्यापारिक संघ का कार्य-मैरिडिथ राउन्सेण्ड के अनुसार, "जाति आनुवंशिक व्यवसायों के व्यापारिक संघ का सबसे दृढ़ रूप है।" भिन्न-भिन्न जातियाँ विशेष व्यवसाय करती हैं। अतः वे अपने व्यावसायिक हितों की सब प्रकार से रक्षा कर सकती हैं।

(7) प्रौद्योगिक प्रशिक्षण - जाति अपने सदस्यों से प्रौद्योगिक प्रशिक्षण का भी प्रबन्ध करती है। इस प्रकार सुनार का लड़का सुनार तथा चमार का लड़का चमार का काम, जाति के अन्य व्यक्ति की देखभाल में निःशुल्क सीख लेता है।

(8) यान्त्रिक तथा प्रौद्योगिक रहस्यों को गुप्त रखना - प्रत्येक जाति के सदस्यों को पीढ़ी दर पीढ़ी अपने आनुवंशिक कला कौशल की शिक्षा मिलती रहती है। व्यावसायिक जातियाँ अपनी इस निपुणता (Skill) तथा कारीगरी के रहस्यों की सावधानी से रक्षा करती हैं।

(9) धार्मिक भावना की रक्षा-वास्तव में प्रत्येक जाति के देवी - देवता एवं धार्मिक विधि-विधान होते हैं जिनकी जाति के सदस्य प्राण-प्रण से रक्षा करते हैं। यह जाति है जो जनता के धार्मिक जीवन में अपने सदस्यों की स्थिति को निश्चित करती है।

(10) राजनीतिक कार्य - आजकल अनेक जातियों ने अपना राजनीतिक संगठन बना लिया है और वे अपनी जाति के सदस्यों को चुनाव में सहायता करती हैं जो कि जाति के हितों की देख-भाल करते हैं। लेकिन इस प्रकार जाति के सदस्य को तो लाभ होता है, परन्तु राष्ट्र के हित की हानि होती है।

(11) संस्कृति की रक्षा - हट्टन कहते हैं कि प्रत्येक जाति की अपनी सामान्य संस्कृति रही है जिसके अन्तर्गत उस जाति विशेष का ज्ञान, कार्यकुशल व्यवहार आदि आते हैं। ये सब जाति में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरित होते रहते हैं। वयस्क सदस्य अपने नये सदस्यों को ये सब सिखा देते हैं। इस प्रकार जाति अपनी संस्कृति की स्थिरता को बनाये रखती है।

(12) श्रम विभाजन - जाति प्रथा का सबसे बड़ा लाभ समाज में समुचित श्रम विभाजन है। इससे सदस्यों में दक्षता एवं विशेषीकरण पनपा है। पुनर्जन्म एवं कर्म की धारणा के कारण जाति के कार्यों की पुष्टि की गई है। व्यक्ति यह सोचता है कि पिछले जन्म के कार्यों के आधार पर उसे इस जन्म में विशेष जाति एवं व्यवसाय प्राप्त हुआ है। यदि अपनी जाति और व्यवसाय से सम्बन्धित कार्यों को ठीक ढंग से किया गया है तो अगले जन्म में उच्च जाति मिलेगी।

जाति प्रथा की हानियाँ

डॉ० राधाकृष्णन के मतानुसार, "दुर्भाग्यवश वही जाति प्रथा जिसे सामाजिक संगठन को नष्ट होने से रक्षा करने के साधन के रूप में विकसित किया गया था, आज उसी की उन्नति में बाधक बन रही है।" वस्तुतः जाति प्रथा की हानियाँ निम्नलिखित हैं-

(1) राष्ट्रीय एकता में बाधक - राष्ट्रीय एकता के लिये 'हम की भावना' या 'एकता की भावना' का होना नितान्त आवश्यक है, परन्तु जातीय व्यवस्था में यह भावना केवल अपनी जाति के लिये ही होती है। जाति प्रथा के अन्तर्गत समाज छोटे-छोटे खण्डों तथा उपखण्डों में विभाजित होता चला जाता है तथा प्रत्येक समूह (खण्ड) दूसरे को समाप्त करके अपने अधिकारों की वृद्धि में प्रयत्नशील रहता है। इस प्रकार राष्ट्रीय एकता में बाधा पड़ती है।

(2) सामाजिक असमानता - जाति प्रथा ने सामाजिक असमानता को इतना बढ़ा दिया है कि एक व्यक्ति दूसरे को छूने मात्र से अपने को अपवित्र मानने लगता है। एक जाति अपने को सर्वश्रेष्ठ तथा दूसरी जाति को पशु तुल्य मानती है। उच्च जाति के लोगों द्वारा निम्न जाति के लोगों पर स्वच्छ वस्त्र पहिनने, काँसे व पीतल के बर्तनों के प्रयोग करने तथा धार्मिक कृत्यों के करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है।

(3) आर्थिक विकास में अवरोधक - प्रत्येक जाति में उसके सदस्यों को व्यवसायों के चुनाव की स्वतन्त्रता नहीं है वरन् उन्हें विभिन्न व्यवसाय परम्परागत आधार पर अपनाने पड़ते हैं, भले ही वे व्यवसाय आज की स्थिति में कितने ही अनुत्पादक क्यों न हों? चाहे किसी व्यक्ति में अपनी आर्थिक उन्नति करने की इच्छा और गुण कितना ही क्यों न हो, लेकिन वह दूसरी जाति के पेशों को नहीं अपना सकता। इस प्रकार उसकी आर्थिक दशा भी परम्परागत ही बनी रहती है। इसी कारण लगता है, हमारे देश के अनेकों लोग पीढ़ियों से ऋण में दबे हुए हैं।

(4) स्त्रियों की निम्न दशा - जाति की रक्षा के नाम पर भारतीय स्त्रियों को शिक्षा से वंचित रखा गया अथवा विवाह भी बचपन में कर दिया जाता था जिससे सम्पूर्ण जीवन वे केवल पुरुष की दासी बनकर ही रह जाती थीं। इतना ही नहीं इससे उनमें अनेकों अन्धविश्वास, पाखण्ड, रूढ़ियाँ तथा कुरीतियाँ आ जाती थीं जो स्वयं में एक समस्या बन गये थे। यह जाति प्रथा ही थी जिसने स्त्रियों को अनेक धार्मिक, सामाजिक तथा आर्थिक अधिकारों से वंचित करके निम्न दशा में रहने को विवश कर दिया था।

(5) सांस्कृतिक उन्नति में बाधक - जाति प्रथा के अन्तर्गत क्योंकि ऊँच-नीच के आधार पर अनेक विभाजन थे, अतः प्रत्येक समूह दूसरे से अलग रहता था। इससे सांस्कृतिक एकीकरण असम्भव था। इतना ही नहीं, एक समूह दूसरे समूह की संस्कृति को नष्ट करके अपनी उन्नति के लिये प्रयत्नशील रहता था।

(6) अस्पृश्यता - अछूत कही जाने वाली जातियों के साथ सवर्ण जातियों ने इतना अमानवीय व्यवहार किया है कि अस्पृश्यता हिन्दू समाज का एक कलंक कहा जा सकता है। इन जातियों को बौद्धिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा अन्य सभी प्रकार की उन्नति करने के अवसरों से वंचित रखा गया।

(7) व्यक्तित्व के विकास में बाधक - जाति प्रथा के अन्तर्गत निषेधात्मक नियमों की बहुलता के कारण व्यक्ति का व्यवहार प्रतिबन्धित रहता है। वह अपनी योग्यता के आधार पर प्रगति नहीं कर सकता। व्यक्ति को यह ज्ञात है कि चाहे वह कितना ही परिश्रम क्यों न कर ले अथवा कितना ही अच्छा कार्य क्यों न कर ले लेकिन वह अपनी जाति की सदस्यता को नहीं बदल सकता। इस प्रकार यह प्रथा व्यक्तित्व के विकास में बाधक है।

(8) धन व श्रम का असमान वितरण - जाति प्रथा ऊँच-नीच की भावना को तो प्रोत्साहन देती ही है लेकिन इसके साथ-साथ यह सभी जातियों के लिये समान रूप से लाभप्रद भी नहीं है। ब्राह्मणों को बहुत कम परिश्रम करने पर भी अधिक लाभ प्राप्त हो जाता है, जबकि शूद्रों एवं निम्न जातियों को अधिक परिश्रम करने पर भी बहुत कम लाभ मिल पाता है।

(9) सामाजिक समस्यायें - जाति - प्रथा ने वस्तुतः अनेक सामाजिक समस्याओं को जन्म देकर बहुतों के जीवन को नरक बना दिया है। इन सामाजिक बुराइयों में दहेज-प्रथा, बाल-विवाह पर प्रतिबन्ध, देवदासी प्रथा, बहु- पत्नी विवाह आदि प्रमुख हैं।

(10) धर्म परिवर्तन - जाति-व्यवस्था से पीड़ित निम्न जाति के अनेक लोगों को पहले इस्लाम और फिर ईसाई धर्म परिवर्तन करने पर विवश होना पड़ा। यह सभी कुछ केवल इसलिये था क्योंकि निम्न जातियों की तुलना में उच्च जातियों को धार्मिक, आर्थिक तथा सामाजिक अधिकार बहुत अधिक प्राप्त थे।

...पीछे | आगे....

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  2. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
  3. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  4. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
  5. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
  6. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
  8. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  9. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  10. प्रश्न- वैश्विक स्तरीकरण से क्या आशय है?
  11. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण की विशेषताओं को लिखिये।
  12. प्रश्न- जाति सोपान से क्या आशय है?
  13. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता क्या है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सामाजिक वातावरण में परिवर्तन किन कारणों से आता है?
  16. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की खुली एवं बन्द व्यवस्था में गतिशीलता का वर्णन कीजिए तथा दोनों में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
  18. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
  19. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  20. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  21. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  22. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  23. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  24. प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  25. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  26. प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  27. प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
  28. प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
  29. प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
  30. प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  31. प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
  32. प्रश्न- जाति-व्यवस्था के स्थायित्व के लिये उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिये।
  33. प्रश्न- जाति व्यवस्था को दुर्बल करने वाली परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?
  34. प्रश्न- भारतवर्ष में जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तनों का विवेचन कीजिये।
  35. प्रश्न- जाति व्यवस्था में गतिशीलता सम्बन्धी विचारों का विवेचन कीजिये।
  36. प्रश्न- वर्ग किसे कहते हैं? वर्ग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में वर्ग की आवधारणा का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
  39. प्रश्न- जाति, वर्ग स्तरीकरण की व्याख्या कीजिये।
  40. प्रश्न- 'शहरीं वर्ग और सामाजिक गतिशीलता पर टिप्पणी लिखिये।
  41. प्रश्न- खेतिहर वर्ग की सामाजिक गतिशीलता पर प्रकाश डालिये।
  42. प्रश्न- धर्म क्या है? धर्म की विशेषतायें बताइये।
  43. प्रश्न- धर्म (धार्मिक संस्थाओं) के कार्यों एवं महत्व की विवेचना कीजिये।
  44. प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
  45. प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
  46. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
  47. प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  48. प्रश्न- जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जाति व्यवस्था को रेखांकित कीजिये।
  50. प्रश्न- आंद्रे बेत्तेई ने भारतीय समाज के जाति मॉडल की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
  51. प्रश्न- बंद संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  52. प्रश्न- खुली संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  53. प्रश्न- धर्म की आधुनिक किन्हीं तीन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये।
  54. प्रश्न- "धर्म सामाजिक संगठन का आधार है।" इस कथन का संक्षेप में उत्तर दीजिये।
  55. प्रश्न- क्या धर्म सामाजिक एकता में सहायक है? अपना तर्क दीजिये।
  56. प्रश्न- 'धर्म सामाजिक नियन्त्रण का प्रभावशाली साधन है। इस सन्दर्भ में अपना उत्तर दीजिये।
  57. प्रश्न- वर्तमान में धार्मिक जीवन (धर्म) में होने वाले परिवर्तन लिखिये।
  58. प्रश्न- जेण्डर शब्द की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
  59. प्रश्न- जेण्डर संवेदनशीलता से क्या आशय हैं?
  60. प्रश्न- जेण्डर संवेदशीलता का समाज में क्या भूमिका है?
  61. प्रश्न- जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- समाजीकरण और जेण्डर स्तरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  63. प्रश्न- समाज में लैंगिक भेदभाव के कारण बताइये।
  64. प्रश्न- लैंगिक असमता का अर्थ एवं प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  65. प्रश्न- परिवार में लैंगिक भेदभाव पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- परिवार में जेण्डर के समाजीकरण का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  67. प्रश्न- लैंगिक समानता के विकास में परिवार की भूमिका का वर्णन कीजिये।
  68. प्रश्न- पितृसत्ता और महिलाओं के दमन की स्थिति का विवेचन कीजिये।
  69. प्रश्न- लैंगिक श्रम विभाजन के हाशियाकरण के विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिए।
  70. प्रश्न- महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- पितृसत्तात्मक के आनुभविकता और व्यावहारिक पक्ष का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  72. प्रश्न- जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता से क्या आशय है?
  73. प्रश्न- पुरुष प्रधानता की हानिकारकं स्थिति का वर्णन कीजिये।
  74. प्रश्न- आधुनिक भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है?
  75. प्रश्न- महिलाओं की कार्यात्मक महत्ता का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- सामाजिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता का वर्णन कीजिये।
  77. प्रश्न- आर्थिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता की स्थिति स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- अनुसूचित जाति से क्या आशय है? उनमें सामाजिक गतिशीलता तथा सामाजिक न्याय का वर्णन कीजिये।
  79. प्रश्न- जनजाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ लिखिए तथा जनजाति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- भारतीय जनजातियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- अनुसूचित जातियों एवं पिछड़े वर्गों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- जनजातियों में महिलाओं की प्रस्थिति में परिवर्तन के लिये उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिये।
  83. प्रश्न- सीमान्तकारी महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु किये जाने वाले प्रयासो का वर्णन कीजिये।
  84. प्रश्न- अल्पसंख्यक कौन हैं? अल्पसंख्यकों की समस्याओं का वर्णन कीजिए एवं उनका समाधान बताइये।
  85. प्रश्न- भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की स्थिति एवं समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- सीमान्तिकरण अथवा हाशियाकरण से क्या आशय है?
  88. प्रश्न- सीमान्तकारी समूह की विशेषताएँ लिखिये।
  89. प्रश्न- आदिवासियों के हाशियाकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- जनजाति से क्या तात्पर्य है?
  91. प्रश्न- भारत के सन्दर्भ में अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या कीजिये।
  92. प्रश्न- अस्पृश्य जातियों की प्रमुख निर्योग्यताएँ बताइये।
  93. प्रश्न- अस्पृश्यता निवारण व अनुसूचित जातियों के भेद को मिटाने के लिये क्या प्रयास किये गये हैं?
  94. प्रश्न- मुस्लिम अल्पसंख्यक की समस्यायें लिखिये।

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book